टोपी सिर का ताज है, हमारी संस्कृति की पहचान हैं

नेशनल हैट-डे आज : शहर में कई लोग हैं टोपी पहनने के शौकीन, किसी के प्रकार हर रंग की पगड़ी, टोपी तो कोई कपड़ों की मैचिंग से बनवाता है कैप

उज्जैन. अंगे्रजी में हैट हो या हिंदी में टोपी, नाम भले ही अलग-अलग हों लेकिन यह आदमी के प्राचीन पहनावों में से एक है। यही कारण है कि इनके आकार-प्रकार, यहां तक कि रंगों का भी अपना इतिहास है। बात सेना की हो, पुलिस की, राजनीतिक दल या व्यवसाय, सभी की टोपियों ने अपनी अलग पहचान बनाई है। इसलिए टोपी का प्रकार कोई भी हो या पहनने का अंदाज कैसा भी हो, वह सिर का ताज ही बनती है।
प्रति वर्ष १५ जनवरी को नेशनल हैट-डे मनाया जाता है। यह दिन टोपी के महत्व को तो बताता ही है, टोपी के शौकीनों का उत्साह भी बढ़ाता है। शहर में भी टोपी पहनने के एेसे कई शौकीन हैं, जिनके लिए टोपी पहचान का हिस्सा बन चुकी है। एेसे ही कुछ लोगों से पत्रिका ने टोपी को लेकर उनके विचार जाने।

भारतीय संस्कृति का हिस्सा है टोपी

राग रसोई पागड़ी बनत-बनत बन जाए, मतलब गीत, भोजन और पगड़ी या टोपी हर किसी से नहीं बनती है। यह कहना है शासकीय स्कूल के प्राचार्य शैलेंद्र व्यास स्वामी मुस्कुराके का। स्वामी मुस्कुराके वर्षों से टोपी पहन रहे हैं और उनके पास लगभग सभी कलर की टोपी, साफे, पगड़ी आदि का संग्रह है। वे कहते हैं, टोपी हमारे सिर का ताज होती है, पुरातन समय में हर समाज, वर्ग में टोपियों का महत्व होता था। यह सम्मान, स्वाभिमान और वैभव की प्रतीक थी लेकिन नई पीढ़ी इसके महत्व को भूल गई है। आज टोपी पहने के बजाय पहनाने में ज्यादा विश्वास किया जाता है। वर्तमान समय में भारतीय संस्कृति का अवमूल्यन भी इसलिए हो रहा है कि हम टोपी को भूल गए, उसकी मान मर्यादा को भूल गए।

 

कपड़े से मैच कर स्वयं बनाते हैं टोपी

कपड़ा व्यवसायी 73 वर्षीय ओमप्रकाश गुप्ता नायक बिना टोपी के कम ही नजर आते हैं। टोपी भी कोई साधारण नहीं, जैसे कपड़े पहने हैं, उसी से मैच करती हुई टोपी उनके सिर पर नजर आती है। खास बात यह कि गुप्ता कपड़े तो टेलर से सिलवाते हैं लेकिन उसकी मैचिंग की टोपी स्वयं घर पर सिलते हैं। गुप्ता करीब ३५ वर्षों से कपड़ों के मैचिंग की टोपी पहन रहे हैं और वर्तमान में उनके पास १५० से अध्ािक टोपियों का कलेक्शन है। गुप्ता कहते हैं, टोपी मेरे लिए बाबा-दाबा का आशीर्वाद है। वे टोपी के बिना स्वयं के ड्रेसअप को अधूरा मानते हैं। टोपी को लेकर हास्य करते हुए गुप्ता कहते हैं कोई बाहरी व्यक्ति हमें टोपी पहनाए, इससे अच्छा है हम स्वयं ही अपने हाथों टोपी पहन लें।

 

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